उपेंद्र-सीके राउत की लड़ाई में कहीं जयप्रकाश ठाकुर बाजी न मार लें - Nai Ummid

उपेंद्र-सीके राउत की लड़ाई में कहीं जयप्रकाश ठाकुर बाजी न मार लें


मधेश प्रदेश में सबसे ज्यादा रोमांच सप्तरी-2 क्षेत्र में है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां दो पार्टी के दिग्गज और अध्यक्ष एक-दूसरे के सामने है। दोनों पार्टी का प्रभाव मधेश में अधिक है। वहीं इन दोनों को टक्कर देने के लिए तीसरा खिलाड़ी है जयप्रकाश ठाकुर जो सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार हैं। इन्हें कमतर नहीं आँका जा सकता। क्योंकि इन्हें माओवादी केंद्र, कांग्रेस और लोसपा का समर्थन प्राप्त है। ठाकुर की उम्मीदवारी के बाद इस चुनावी मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। 

आंकड़ों की बात करें तो वि.सं. 2074 के चुनाव में जसपा अध्यक्ष यादव ने माओवादी केंद्र के नेता उमेश कुमार यादव को 21,620 मतों से हराया था। उमेश को सिर्फ 11,580 वोट ही मिले थे। वहीं जयप्रकाश ठाकुर को 10,000 से अधिक वोट मिले। जबकि इससे पहले के चुनाव में चुनावी समीकरण कुछ और था और इस बार कुछ और। इसके अलावा इस बार ठाकुर को सत्ताधारी दलों का समर्थन भी प्राप्त है। इसलिए यहां की जनता ठाकुर को मजबूत उम्मीदवार मानते हैं।

दूसरी ओर, अधिकतर लोगों का यह मत है कि इस बार वास्तव में दोनों अध्यक्षों के बीच ही कड़ा मुकाबला है। हालांकि सप्तरी 2 में देखा जा रहा है कि जसपा अध्यक्ष यादव और जनमत अध्यक्ष राउत के बीच कड़ा मुकाबला होगा। यदि स्थानीय स्तर के चुनाव के वार्ड वोटों को आधार मानें तो जसपा इस क्षेत्र में मजबूत पार्टी है। जसपा ने इस बार एमाले का भी  समर्थन किया है। ऐसे में एमाले का वोट उपेंद्र यादव के लिए भी मददगार हो सकता है। बता दें कि जसपा को वार्ड में 14,403 वोट मिले। वहीं कांग्रेस को 10,807 और एकीकृत समाजवादी पार्टी को 10,435 वोट मिले थे। जबकि माओवादी केंद्र को 9 हजार 534 और एमाले को 5 हजार 951 वोट मिले। वहीं राउत की जनमत पार्टी को 4,542 वोट मिले।

यह भी कहा जा रहा है कि यदि सत्ता गठबंधन ईमानदारी दिखाती है तो लोसपा के नेता जय प्रकाश ठाकुर इन दोनों नेताओं को पटखनी दे सकते है। कुल मिलाकर देखा जाए तो राउत ही नहीं ठाकुर भी जसपा अध्यक्ष यादव के लिए कड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं।

दूसरी ओर, जनमत पार्टी के अध्यक्ष राउत के लिए यह चुनाव सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। सीके राउत पहली बार जनता के बीच चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में राउत की चुनावी अनुभव की कमी राउत के लिए ही भारी ना पड़ जाए, ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है। यही वजह है कि राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि यह चुनाव उनके लिए कड़ी परीक्षा बन गया है।


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