सरकार कैसे तय करे संदेश सही या गलत? - Nai Ummid

सरकार कैसे तय करे संदेश सही या गलत?


डाॅ. वेदप्रताप वैदिक : 
सोशल मीडिया की प्रसिद्ध कंपनी, ट्विटर, ने यह कहकर अदालत की शरण ली है कि भारत सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है, क्योंकि वह चाहती है कि ट्विटर पर जाने वाले कई संदेशों को रोक दिया जाए या हटा दिया जाए। उसने गत वर्ष किसान आंदोलन के दौरान जब ऐसी मांग की थी, तब कई संदेशों को हटा लिया गया था। लेकिन ट्विटर ने कई नेताओं और पत्रकारों के बयानों को हटाने से मना कर दिया था। जून 2022 में सरकार ने फिर कुछ संदेशों को लेकर उसी तरह के आदेश जारी किए हैं लेकिन अभी यह ठीक-ठीक पता नहीं चला है कि वे आपत्तिजनक संदेश कौन-कौन से हैं?

क्या वे न्यायाधीशों की मनमानी टिप्पणियां हैं या नेताओं के निरंकुश बयान हैं या साधारण लोगों के अनाप-शनाप अभिमत हैं? सरकारी आपत्तियों को ट्विटर कंपनी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। उसका कहना है कि ज्यादातर आपत्तियां विपक्षी नेताओं के बयानों पर है। केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि सरकार ऐसे सब संदेशों को हटवाना चाहती है, जो समाज में बैर-भाव फैलाते हैं, लोगों में गलतफहमियां फैलाते हैं और उन्हें हिंसा के लिए भड़काते हैं।

पता नहीं कर्नाटक का उच्च न्यायालय इस मामले में क्या फैसला देगा लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वैष्णव की बात सही लगती है परंतु असली प्रश्न यह है कि सरकार अकेली कैसे तय करेगी कि कौनसा संदेश सही है और कौनसा गलत? अफसरों की एक समिति को यह अधिकार दिया गया है लेकिन ऐसे कितने अफसर हैं, जो मंत्रियों के निर्देशों को स्वविवेक की तुला पर तोलने की हिम्मत रखते हैं? इस बात की पूरी संभावना है कि वे हर संदेश की निष्पक्ष जांच करेंगे लेकिन अंतिम फैसला करने का अधिकार उसी कमेटी को होना चाहिए, जिस पर पक्ष और विपक्ष, सबको भरोसा हो।

इसमें शक नहीं है कि सामाजिक मीडिया जहां सारे विश्व के लोगों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है, वहीं उसके निरंकुश संदेशों ने बड़े-बड़े कोहराम भी मचाए हैं। आजकल भारत में चल रहा पैगंबर-विवाद और हत्याकांड उसी के वजह से हुए हैं। जरुरी यह है कि समस्त इंटरनेट संदेशों और टीवी चैनलों पर कड़ी निगरानी रखी जाए ताकि लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन कोई भी नहीं कर सके। सामाजिक मीडिया और टीवी चैनलों पर चलनेवाले अमर्यादित संदेशों की वजह से आज भारत जितना परेशान है, उससे कहीं ज्यादा यूरोप उद्वेलित है।

इसीलिए यूरेापीय संघ की संसद ने कल ही दो ऐसे कानून पारित किए हैं, जिनके तहत गूगल, एमेजान, एप्पल, फेसबुक और माइक्रोसाॅफ्ट जैसे कंपनियां यदि अपने मंचों से मर्यादा भंग करें तो उनकी कुल सालाना आय की 10 प्रतिशत राशि तक का जुर्माना उन पर ठोका जा सकता है। यूरोपीय संघ के कानून उन सब उल्लंघनों पर लागू होंगे, जो धर्म, रंग, जाति और राजनीति आदि को लेकर होते हैं। भारत सरकार को भी चाहिए कि वह इससे भी सख्त कानून बनाए लेकिन उसे लागू करने की व्यवस्था ठीक से करे।

Previous article
Next article

Leave Comments

एक टिप्पणी भेजें

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads