वट सावित्री से जुड़ी वास्तविक एक कथा
भोला झा (गुरुजी) :
आप सभी को वट सावित्री पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं ।यह व्रत नारियों के लिए अति महत्वपूर्ण है । इस दिन स्त्रियां वट वृक्ष (वरगद) पेड़ की पूजा करती हैं ।कहा जाता है कि वरगद पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश निवास करते हैं । नारी वरगद पेड़ की पूजा कर अपने पति और पुत्र, पुत्री की सलामती का सौभाग्य पाती हैं । ऐसे भी हमारी संस्कृति प्रकृति पूजक है ।इसके साक्ष्य पुराण व अन्य ग्रन्थ में उपलब्ध है । कहते हैं वरगद पेड़ की
शाखाएं सावित्री की देन है । सावित्री मद् देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी । वे वड़े धार्मिक प्रवृत्ति के राजा थे । पुत्री के सोलह सावन बीतने के बाद उन्होंने उनसे कहा कि तुम अपना योग्य वर ढूंढ लो । पिता का आदेश पाकर सावित्री वर ढूंढने के लिए चहू दिशा भ्रमण पर निकल गई । वर चयन के क्रम में उसने सत्यवान को मन ही मन वर चुन लिया ।
सत्यवान शाल्वदेश के राजकुमार थे। उनका लालन-पालन जंगलों में हो रहा था । कहते हैं न बूरा वक्त किसी को नहीं छोड़ता । सावित्री सत्यवान को अपना वर स्वीकार कर लिया यह निर्णय पिता को सुनाया । राजा इस निर्णय के ऊपर परामर्श के लिए मूनि व ईश्वर को अपने सभागार में आमंत्रित किया । नारद मुनि ने सत्यवान की अल्पायु की बात कही । सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रही । राजा ने सावित्री की इच्छानुसार सत्यवान के साथ धूमधाम से शादी करवा दी ।
यहां राजा अश्वपति के पुत्री के प्रति प्रेम एवं विश्वास की भावना को समझा जा सकता है ।
एक साल विवाहोपरांत सत्यवान की मौत हो जाती है । सावित्री अपने तप,बल, बुद्धि से भगवान यमराज से अपने पति का प्राण वापस ले पाने में समर्थ हो जाती हैं ।
यह व्रत सावित्री और सत्यवान की कहानी के परिणाम स्वरूप मनाया जा रहा है ।
सभी नारी इस व्रत को रख अपने पति और बच्चों की दीर्घायु होने का आशीर्वाद व भरोसा पाती हैं ।
यह पूरब के राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है ।
भगवान शिव आप सभी पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें ।
(इस पर्व से जुड़ी एक वास्तविक कथा है ।)
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