एनजीओ की प्रासंगिकता - Nai Ummid

एनजीओ की प्रासंगिकता

 



भोला झा गुरुजी: 

मानव सभ्यता के आरंभ से हीं एनजीओ की संकल्पना को स्वीकार किया जाता है | जब आदि मानव अपने अस्तित्व को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए अग्रसर हो रहे थे तो उस वक्त वे गैर सरकारी संगठन से अनभिज्ञ थे पर गैर सरकारी संगठन की तरह नागरिक संगठन बनाकर अपनी सुरक्षा के लिए, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए काम कर रहे थे | तब उन्हें यह ज्ञान नहीं था कि यही नागरिक संगठन आगे चलकर एनजीओ का प्राकृतिक या विधिक रूप ले लेगा |  आज की बात करें तो वैश्विक स्तर पर तकरीबन 100000 सक्रिय गैर सरकारी संगठन है  वहीं भारत में कुल 1.25 मिलियन के आस पास एनजीओ हैं | भारत विकासशील से विकसित राष्ट्र की ओर उन्मुख देश है जिसकी वर्तमान आबादी करीब 1,392,420,08 है | भारत पर लंबे अरसे तक  मुगल एवं ब्रिटिश का शासन कायम रहा | उनके द्वारा जो भी विकास कार्य हुए  मसलन रोड, रेलवे, पुल, भवन, विद्यालय, औद्योगिक संस्थान आदि का निर्माण  उन्होंने अपने शासन विस्तार की  महत्वाकांक्षा के लिए किया था पर गलती से उन विकास उपकरणों का लाभ हम भारतीयों ने भी उठाया | भारत  की सभ्यता एवं संस्कृति जाति, वर्ग, रंग, रूप, गंध, स्वाद, भाखा धर्म से आबद्ध है | इसलिए सरकार चाहकर भी समग्र विकास नहीं कर पाती है | तो फिर यहाँ गैर सरकारी संगठनों की भूमिका समाजहित में अपेक्षित हो जाती है |वैसे तो एनजीओ की धारणा अति प्राचीन है पर गैर सरकारी संगठन के इतिहास का तिथि निर्धारण 1839 ई है | इसी क्रम में सुप्रसिद्ध गैर सरकारी संगठन रोटरी जो अब रोटरी इंटरनेशनल से जाना जाता है की स्थापना 1905 ई में हुई थी | आज भी रोटरी इंटरनेशनल अपनी दम खम के साथ जीवंत और लोकहित में मौजूद है | भारत गावों का देश है जहाँ  कुल 6,50,325 गाँव हैं | हम सबने यह सुन रखी है कि "भारत की आत्मा गाँव में बसती है "| यही कारण है कि भारत अपने कृषिप्रधान व ग्रामप्रधान जैसे देश को विकसित करने का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा, जब तक हमारे सभी गावों में जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो जाती है | अगर हमारे गाँव हीं समस्याओं से त्रस्त रहेंगे तो फिर सफल लोकतंत्र का दंभ भरना एक कोरी कल्पना हीं साबित होगा | भारत सरकार व संबंधित राज्य सरकारें सुदूर गाँव में जिन मूलभूत सुविधाओं को नहीं पहूँचा पाती है, वहाँ एनजीओ व संसाधन युक्त मानवीय संसाधन के मदद की दरकार है |  प्राय: यह देखने को मिलता है कि एनजीओ भारत के महानगरों में  अपनी सक्रियता को कायम रखा हुआ है | महानगर तो पूर्व से ही चहुंमुखी विकास को धारण किया हुआ है | एनजीओ महानगरों की  उंची इमारतों में पंखे, कुलर, फ्रिज, व एयर कंडीशनर की भौतिक सुविधाओं से लैस होकर लोकहित कार्य संपादन तो करते हैं पर जमीनी हकीकत से दूर | एनजीओ को वहाँ पहुँचना चाहिए जहाँ सरकार नहीं पहूँच पाती है | एनजीओ को महानगरों के झुग्गी झोपड़ी,पूर्नस्थापित काॅलोनी के अपरिपक्व और परिपक्व मानवीय संसाधनों के चहूँमुखी विकास के लिए काम करना  चाहिए | 

 आज के कोरोना काल सबके लिए परीक्षा की घड़ी है | वर्तमान दौर में जो भी एनजीओ या मानव औरों से हटकर कुछ कर जाएगा वही सिकंदर कहलाएगा | इतिहास सदैव उन्हें ससम्मान याद किया करेगा | कोरोना के इस संकट के समय कुछ एनजीओ ,उद्योगपति व व्यक्ति ने वेंटिलेटर, आक्सीजन, दवा आदि की दान देकर मानवता को बचाने का पुनित कार्य किया है | सही मायनों में आज के कोरोना काल में जिन्होंने आगे आकर मानवता की सेवा की है वही वास्तविक एनजीओ हैं  बांकी सब तो दिखावा है |

(लेखक शिक्षाविद हैं)

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