कौन है भगवान चित्रगुप्त और कैसे करें इनकी पूजा? (वीडियो सहित)
भगवान को चित्रगुप्त के नाम से पहचाने जाने के पीछे भी पुराणों में कई कथाओं का उल्लेख मिलता है। एक कथा में बताया गया है कि महाप्रलय के पश्चात् सृष्टि की पुर्नरचना की जानी थी। भगवान ब्रह्मा तपस्या में लीन थे। करीब हजारों वर्षों की तपस्या के दौरान उनके स्मृति पटल पर एक चित्र अंकित हुआ और गुप्त हो गया। भगवान के मुख से निकल पड़ा चित्रगुप्त। अर्थात जो चित्र गुप्त हो और मन में स्थित हो। इसके पश्चात् जब उनकी तंद्रा टूटी तो सामने दिव्यपुरूष खडे़ थे। इन्हें ही चित्रगुप्त नाम दिया गया। ब्रह्मा जी ने दिव्यपुरूष को महाकाल नगरी में जाकर तपस्या करने को कहा। ये दिव्य पुरूष भारत के उज्जैन आए और घोर तप किया। जिसके प्रभाव से सृष्टि के प्रत्येक प्राणि के कर्मों का लेखा-जोखा रखने की शक्ति चित्रगुप्त को प्राप्त हो पाई। इन्होंने मानव कल्याण के लिए शक्तियाँ अर्जित कीं।
चित्रगुप्त का रूप
भगवान श्री चित्रगुप्त का स्वरूप कमल के समान नेत्रों पूर्ण चन्द्र के समान मुख, श्याम वर्ण, विशाल बाहु, शंख के समान ग्रीवा, शरीर पर उत्तरीय, गले में बैजयंती माला, हाथों में शंख, पत्रिका लेखनी तथा दवात वाले एक अत्यंत भव्य महापुरुष का था। जहाँ एक ओर चित्रगुप्त जी के एक हाथ में कर्मों की पुस्तक है वहीं दूसरे हाथ से वे कर्मों का लेखा-जोखा करते दिखलाई पड़ते हैं।
चित्रगुप्तजी का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ था। जिसमें सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुए जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीकि नाम से विख्यात हुए।
कैसे करें चित्रगुप्त जी की पूजा?
प्रातः काल पूर्व दिशा में चैक बनाएं। इस पर चित्रगुप्त भगवान के विग्रह की स्थापना करें। उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं, पुष्प और मिष्ठान्न अर्पित करें। उन्हें एक कलम भी अर्पित करें।
कुछ और रोचक बातें
भगवान श्री चित्रगुप्त के पहले भाषा की कोई लिपि नहीं थी। उनका प्रवचन दिया जाता था श्री चित्रगुप्त ने माँ सरस्वती से विचार विमर्श के बाद लिपि का निर्माण किया और अपने पूज्य पिता के नाम पर उसका नाम ब्राह्मी लिपि रखा। इस लिपि का सर्वप्रथम उपयोग भगवान वेद व्यास के द्वारा सरस्वती नदी के तट पर उनके आश्रम में वेदों के संकलन से प्रारंभ किया गया। वेद के उप निषाद, अरण्यक ब्राह्मण ग्रंथों तथा पुराणों का संकलन कर उन्हे लिपि प्रदान किया गया।
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