‘कोजगरा’ आखिर क्यों नवविवाहितों का है सबसे बड़ा पर्व ? (वीडियो सहित)
शादी के पहले साल इस तिथि का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। नवविवाहितों के घर पहली बार यह पूजा विशेष धूमधाम से मनाई जाती है। नवविवाहितों का जीवन सुखमय हो। मां लक्ष्मी की कृपा उनपर बनी रहे। उनका घर धन धान्य एवं सुख समृद्धि से परिपूर्ण रहे, इसी कामना के साथ कोजगरा का त्योहार मनाया जाता है। कई जगहों पर सुख-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।
शरद पूर्णिमा को मिथिला में कोजगरा के रूप में मनाया जाता है। कोजगरा दशहरा यानि विजयादशमी के पांचवें दिन मनाया जाता है। कोजागर का अर्थ है को-जागृति यानी सारी रात जागने का पर्व। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा साल भर का एक मात्र ऐसा दिन है जिस दिन चंद्रमा अपनी षोडश यानी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और आज अपनी किरणों द्वारा धरती पर अमृतवर्षा करता है। इसी वजह से आज लोग कई जगहों पर खीर बना कर उसे रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं अथवा सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
यह दिन मिथिलांचल में बहुत महत्व रखता है। यही वह दिन है जब नवविवाहित युवक के लिए उसके ससुराल से कोजगरा का भार आता है। और एक बार फिर लड़के को वर की तरह सजाया जाता है।
कोजगरा पूर्णिमा की रात की बड़ी मान्यता है। कहा गया है कि इस रात दूधिया प्रकाश में दमकते चाँद से धरती पर जो रोशनी पड़ती है जिससे धरती का सौंदर्य निखरता जाता है। नवविवाहित युवक की शादी के बाद का पहला कोजगरा काफी उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। इस दिन वर सहित पूरे परिवार के लिए उपहार आता है। कहा जाता है कि लड़के के कोजगरा में उसे जूता से छाता तक ससुराल से मिलता है।
आप बस यह समझ लें कि शगुन के तौर पर जो कुछ सामान भेजा जाता है उसे ही हम डाला, पेटारी या भार के नाम से जानते हैं। इन सामानों में वर सहित पूरे घर वालों के लिए कपड़े भेजे जाते हैं। वर के लिए जनेऊ एवं अन्य शुभ प्रतीक भेजे जाते हैं। संभव हुआ या सक्षम हुए तो कोई आभूषण वगैरह भी भेजा जाता है। इसके अलावा पेटारी में मखान, मिठाई, फल, ड्राय फ्रूट्स वगैरह भी रखे जाते हैं। परंपरागत रूप से जजमानी व्यवस्था के तहत गांव के कहार से वर के गांव ले जाते हैं। वर का कोई साला यानी वधू का कोई भाई है तो वही सामान ले जाने की जिम्मेवारी को निभाता है।
लड़का उसी तरह से शाम में तैयार होता है जैसे शादी की रात होता है। माथे पर चन्दन, आँख में काजल, सर पर पाग और ससुराल से आया कपड़ा पहनकर वर तैयार होता है। घर के आँगन में अष्टदल का अरिपन (अल्पना) देकर उस पर सुसज्जित डाला (जिसमें पान मखान, नारियल, सुपारी, जनेऊ, कौड़ी और शतरंज होता है) रखा जाता है। डाला के सामने अहिवातक पातिल (मिट्टी का छोटा घड़ारूपी बरतन) जिसमें चैमुख दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। एक पिठार (पीसा चावल) लगा कलश जिसमें जल, आम का पल्लव होता है रखा जाता है। फिर पीढ़ी पर पूर्व दिशा में मुख करके नवविवाहित वर को बैठाया जाता है। वर को दुब व धान लेकर पाँच बार कम से कम पाँच सुहागिनों ने चुमावन किया जाता है। जिसके बाद ब्राह्मणों द्वारा दूर्वाक्षत दिया जाता है।
मिथिलांचल में कोजगरा के अवसर पर महालक्ष्मी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। रात में जागकर महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इस अवसर पर वर अपने साला के साथ चैपड़, कौड़ी या ताश खेलता है। यानि नव विवाहित वर को भार लेकर आने वाले अपने साला के साथ कौड़ी-पचीसी खेलने की विधि भी पूरी करनी पड़ती है। कई बार इसे जुए का भी रूप दे दिया जाता है। इस मौके पर वर और वधू पक्ष के लोगों के बीच जमकर हंसी मजाक, हास-परिहास का दौर चलता है। खूब ठहाके लगते हैं।
इस अवसर पर होने वाली लोकगीतों से पूरा घर-आँगन गूंज उठता है। मिथिला की सांस्कृतिक पहचान के रूप में गांव समाज के लोगों में पान मखान बांटा जाता है। मिथिला में सदियों से कोजगरा पूजन की परंपरा को लोग आज भी खूब उत्साह से मनाते हैं।
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