कुछ रोचक बातें ‘माँ दुर्गा’ के बारे में
दुर्गा पूजा देश के प्रमुख त्योहार है और इसे खूब धूमधाम से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा से संबंधित कई ऐसे रोचक तथ्य हैं जिसकी जानकारी कई लोगों को नहीं है। ये कुछ ऐसी मान्यताएं हैं जिनसे हमारी संस्कृति समृद्ध बनी हुई है। लोगों के बीच समाज को जोड़ती इन उत्सवों और मान्यताओं को लेकर खुशी वाकई में हमारे समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है।
शाक्त परंपरा में माँ दुर्गा को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यहां देवी का स्थान सर्वाेच्च होता है। शाक्त सम्प्रदाय में देवी को शक्ति का रुप माना जाता है। मां दुर्गा को ये नाम राक्षस महिषासुर को मारने के बाद मिला था।
प्रजनन क्षमता और ताकत
माँ दुर्गा को शक्ति का अवतार माना गया है, उन्हें भौतिक दुनिया में प्रजनन क्षमता और ताकत का प्रतीक भी माना जाता है।
8 दिशाएं
माँ दुर्गा के 8 हाथ हैं जिन्हें हिंदू धर्म में 8 दिशाओं प्रतीक माना जाता है। इसका यह अर्थ है कि माँ आठों दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती है।
शक्ति रुप
माँ दुर्गा को ‘शक्ति’ के रूप में पूजा जाता है। इन्हें दिव्य ऊर्जा भी कहा जाता है क्योंकि इसमें ब्रह्मांड को बचाने के लिए देवताओं की शक्ति भी है।
शेर की सवारी
माँ दुर्गा की सवारी शेर है जिसे शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि उनके पास सबसे अधिक शक्ति है जिसे वे दुनिया की रक्षा करती हैं।
क्यों त्रिशूल है हाथ में
त्रिशूल उनके हाथ में त्रिशूल तीन गुणों का प्रतीक है पहला सतवा (मन की स्थिरता), दूसरा राजस (महत्वाकांक्षा) और तीसरी तमों (आलस और तनाव)। माँ दुर्गा इन तीनों ऊर्जाओं को संतुलित करती हैं।
शिव अर्धांग्नी
माँ दुर्गा को शिव की अर्धांग्नी माना गया है। शिव रूप हैं तो वे अनुसरण हैं। शिव ब्रह्मांड के पिता है और वे माता है।
त्र्यम्बके नाम
माँ दुर्गा की तीसरी आंख की वजह से उनका नाम त्र्यम्बके पड़ा, जो अग्नि, सूर्य और चंद्र का प्रतीक है।
गरबा डांडिया
नवरात्रि को पश्चिम में गरबा-डांडिया के रूप में मनाया जाता है, उत्तर में रामलीला और दक्षिण में गोलू या बोनलु के रूप में मनाया जाता है जबकि पूर्वी में यह दुर्गा पूजा के रूप में जाना जाता है।
महिषासुर का वध
माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया, भले ही उसने विभिन्न प्रकार की चालों से उन्हें अपने वश में करने की कोशिश की थी।
अकल-बोधन
शुरुआती दौरान में दुर्गा पूजा को वसंत पूजा के रूप में मनाया जाता था। वहीँ शरद ऋतु में इसे अलग तरीके से मनाया जाता है और इसे अकल-बोधन के नाम जाना जाता है।
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