असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है ‘विजयादशमी’
नेपाल एक हिन्दू धर्म बाहुल्य राज्य है। यूं तो नए संविधान में नेपाल को हिन्दू राष्ट्र की मान्यता नहीं मिली फिर भी नेपाल व्यवहारिक रूप से हिन्दू राष्ट्र ही है। हिन्दू धर्मावलम्बी के लिए दशहरा सबसे बड़ा त्योहार होता है। दशहरा को नेपाल में दशैं भी कहा जाता है। असत्य पर सत्य की जीत और बुरे पर अच्छाई की जीत मानी जाती है ये पर्व।
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दशैं थानि की दशहरा को नेपाल सरकार द्वारा विशेष स्थान दिया जाता है। बच्चो से लेकर बुजुर्ग तक ‘‘दशैं आयो खाउला पिउँला पिङ्ग खेलौंला रमाइलो गरौंला’’ गाते हुए दशहरा के आगमन को लेकर खुश होते हैं। इस मुहावरे का मतलब दशहरा आया, अब खाएंगे, खेलेंगे और मनोरंजन करेंगे। इस अवसर पर बच्चे पतंग भी उड़ाते हैं।
दशहरा के अवसर पर नेपाल की जनता नया वस्त्र पहनते हैं। मांसाहारी हिन्दू परिवार में बकरा, पारा एवं अन्य पशुओं की बलि दी जाती है। इतना ही नहीं सप्तरी के भारदह स्थित मां कंकालिनी के मन्दिर में भैंस की बलि भी दी जाती है। अनेकों पकवान का बनना, घर में अगरबत्ती-धूप की गमक, फूलों से सजी माता की तस्वीर और अपने मित्रजन रिश्तेदार से मिलना-जुलना जैसा माहौल होता है इस पर्व के मौके पर। सप्तमी से लेकर दशमी तक विशेष चहल-पहल रहती है। दसवें दिन को बड़ा दशैं के नाम से से भी पुकारा जाता है। इस दिन टीका यानि कि चन्दन का टीका लगाया जाता है। जयन्ती पहनाया जाता है। बड़े अपने छोटे को आशीष के तौर पर नगद दक्षिणा भी देते हैं। टीका लगाने और दक्षिण देने का चलन पहाड़ी समाज में खास करके रहा है। वहीं नेपाल के मधेसी समाज मंे दसवंे दिन को विजयादशमी नाम से पुकारा जाता है। इस दिन सब अपने से बड़ों के पांव छूकर आशिर्वाद लेते हैं। सभी अपने परिवार के साथ घर के नजदीक के मेला घुमने जाते हैं। साथ ही मां भगवती का भी दर्शन करते हैं। इस अवसर पर सभी धार्मिक स्थलों पर जनसैलाब उमड़ पड़ता है।
दशहरा पर्व के दौरान विकृतियां
नेपाल में दशहरा पर्व के दौरान अनेक विकृतियां भी दिखाई पड़ती है। सबसे बडा विकृति है ‘‘जुआ’। इस पर्व के दौरान युवा शहर-गाव के चैक- चैराहे पर जुआ खेलते हैं। ताश की पत्तियों पर बोली लगती है। नेपाल सरकार द्वारा बंदिश लगाये जाने के बावजूद इस पर अंकुश नहीं के बराबर है। दूसरा सबसे बडा विकृति है मनोरंजन के नाम पर शराब का बेतहाशा इस्तेमाल। इस पर्व के दौरान शराब की बिक्री आमतौर से बहुत ही ज्यादा होती है। जिसका असर गरीबों के घर में साफ दिखाई पड़ता है। एक तो इस पर्व के दौरान काम कम होता है दूसरी तरफ पैसों का शराब पर खर्च कर देने से माली हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उनके लिए दशैं पर्व कुछ विशेष रह ही नहीं जाता। उनके बच्चों के लिए नए कपड़े तो दूर की बात है उन्हें तो दो वक्त का खाना भी कभी-कभी नसीब नहीं हो पाता।
दशैं जैसे पवित्र के अवसर पर जनता को पूर्ण सादगी और सच्ची आस्था के साथ भगवती की पूजा-अर्चना करना चाहिए। सभी अपने परिवार को खुश रखने हेतु मिलजुलकर पर्व मनाये जिससे सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट की किरण हमेशा बनी रहे।
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