आखिर कैसे पड़ा दुर्गा मां के पांचवें रूप का नाम स्कंदमाता?
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
माँ दुर्गा का पंचम रूप स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है। माता की कृपा दृष्टि होने से मूढ़ व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। कहा जाता है कि माँ की कृपा से ही महाकवि कालिदास की रचना रघुवंशम और मेघदूत संभव हो पायी थी। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ के इस स्वरूप का नाम स्कंदमाता पड़ा। भगवान स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है।
स्कंद माता की चार भुजायें है। दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से माँ ने कुमार कार्तिकेय (स्कंद कुमार) को थाम रखा है। नीचे वाली में कमल का पुष्प सुशोभित है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। माँ को पद्मासना, गौरी और माहेश्वरी आदि नामों से भी जाना जाता है। माता स्कंद सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है। इस कारण उनके श्रीमुख पर कांति और तेज बना रहता है। इनका वाहन भी सिंह है।
माँ स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है। यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।
देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है। अतः मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती है।
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