मिथिला की निर्जला व्रतों में से एक 'जितिया' पर्व
जितिया पर्व को कई नाम से पुकारा जाता है जैसे कि जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत। इसे पूरे मिथिला में बड़े ही श्रद्धा-भाव के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस व्रत को निर्जला किया जाता है। जिसमें पूरे दिन और रात को पानी भी नहीं पीया जाता है। आइए और जानते हैं इस जितिया पर्व के बारे में विशेष:-
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नहाय खाय विधि की बात करें तो सप्तमी के दिन नहाय खाय का नियम होता है। बिल्कुल छठ की तरह ही जितिया में नहाय खाय होता है। इस दिन महिलाएं सुबह-सुबह उठकर गंगा स्नान करती हैं और पूजा करती हैं। अगर आपके आसपास गंगा नहीं हैं तो आप सामान्य स्नान कर भी पूजा का संकल्प ले सकती है। नहाय खाय के दिन सिर्फ एक बार ही भोजन करना होता है। इस दिन अधिकतर जगहों पर मछली खाने की परंपरा है तो वहीँ कुछ जगहों पर सात्विक भोजन को ही प्राथमिकता दिया जाता है। नहाय खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह खाना चील व सियारिन के लिए रखा जाता है।
व्रत के दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन पारण तक कुछ भी ग्रहण नहीं करतीं।
इस पर्व के महत्व के बारे में बात करें तो जितिया व्रत संतान की लंबी आयु, सुखी और निरोग जीवन के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिउतिया के दिन व्रत कथा सुनने वाली व्रती को जीवन में कभी संतान वियोग नहीं होता। संतान के सुखी और स्वस्थ्य जीवन के लिए यह व्रत रखा जाता है। आइए अब जानते हैं कि आखिर जितिया पूजा कैसे किया जाता है:-
1. जितिया के दिन महिलाएं स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
2. पूजा के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करती हैं।
3. मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है।
4. फिर इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है।
5. पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है।
6. पारण के बाद पंडित या किसी जरूरतमंद को दान और दक्षिणा दिया जाता है।
जितिया पर्व के पारण विधि की बात की जाए तो यह जीतिया व्रत का अंतिम दिन होता हैं। व्रत का पारण अगले दिन प्रातः काल किया जाता है। जितिया के पारण के नियम भी अलग-अलग जगहों पर भिन्न हैं। कुछ क्षेत्रों में इस दिन नोनी का साग, मड़ुआ की रोटी आदि खाई जाती है। तो कई जगहों पर मरूवा की रोटी और मछली खाने की परंपरा है।
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