सशक्तिकरण का सशक्त माध्यम ‘साक्षरता/शिक्षा’ - Nai Ummid

सशक्तिकरण का सशक्त माध्यम ‘साक्षरता/शिक्षा’


साक्षरता एक सेतु है, जो इंसान को विपदा से निकाल कर अच्छी अवस्था की ओर ले जाती है’... ये उक्त बातें संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कही थी। देखा जाए तो साक्षरता एक प्रकार से जीवनपर्यंत सीखने और समझने पर आधारित कौशल है और यह सतत, समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। साक्षरता और कौशल इंसान के जीवन को उन्नत स्तर की ओर ले जाता है। किसी भाषा में लिखी सामग्री को समझकर पढ़ने का कौशल जीवन के हर क्षेत्र में काम आता है। अगर किसी इंसान को पढ़ना नहीं आता है तो उसे किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसे हर पढ़ा-लिखा आदमी आम शब्दावली में साहब नजर आता है। साक्षरता या पढ़ने का कौशल एक आत्मविश्वास देता है, साथ ही यह चीजों को समझने का एक जरिया भी है।

कहते हैं किसी लिखी हुई सामग्री के बारे में सोचने और उसका विश्लेषण करने की ताकत देती है ‘शिक्षा’। इसलिए साक्षरता को केवल अक्षरों तक सीमित नहीं करना चाहिए। केवल नाम लिख लेना भर पर्याप्त नहीं है। नाम लिखना-पढ़ना तो बच्चों को दो-तीन महीने में सिखाया जा सकता है, इससे वे अपना और दूसरे का नाम लिख-पढ़ लेंगे। मगर सिर्फ नाम में क्या रखा है, वाली बात सामने होगी। असली मुद्दा तो नाम से आगे जाने का है ताकि इंसान दुनिया में अपने अस्तित्व को सम्मान के साथ जी पाए।

यूनेस्को ने पहली बार 7 नवंबर, 1965 को यह फैसला लिया था कि प्रत्येक वर्ष 8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का आयोजन किया जायेगा। उसके बाद पहली बार 1966 में इसका आयोजन किया गया। वर्ष 2019 की थीम है- साक्षरता और बहुभाषावाद। साक्षरता उन प्रमुख तत्वों में से एक है, जिसकी जरूरत सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। चूँकि साक्षरता आम आदमी को सशक्त बनाती है, इसलिए इंसान अपनी आर्थिक क्षमता में बढ़ोतरी और सामाजिक विकास समेत पर्यावरण के बारे में सही फैसले ले सकता है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 127 देशों में 101 देश ऐसे हैं, जो पूर्ण साक्षरता हासिल करने से दूर है।

साक्षरता के मायने में देखा जाए तो नेपाल ने भी काफी तरक्की किया है। लेकिन सवाल उठता है क्या केवल नाम लिख लेने भर से वो व्यक्ति साक्षर हो जाएगा। नेपाल में साक्षर की संख्या में बढ़ावा देने के लिए देशभर में साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया था और अभी भी जारी है। इसमें कोई उम्र निर्धारित नहीं की गयी थी। बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़ों ने इसमें हिस्सा लिया। महिलाओं को विशेष तौर पर शामिल किया गया। इस कार्यक्रम से काफा संख्या में लोग साक्षर भी हुए।

आज शिक्षा का अर्थ केवल साक्षरता से लिया जाता है, राज्य और राष्ट्र के विकास को साक्षरता की कसौटी पर नापा जाता है, जब वो स्वयं आत्मीक रूप से उन्न्त होगा। वह पक्के तौर पर समाज को भी उन्नति के रास्ते पर ले जा सकता है। आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा जरूरी है साक्षरता नहीं।

यूनिस्को की मानें तो जिस जिला में 95 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति साक्षर होंगे तभी वह जिला पूर्ण रूप से साक्षर माना जाएगा। यह बता दें कि वर्ष 2015 में नेपाल ने लिखित रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निरक्षरता उन्मूलन की प्रतिबद्धता जताया था। सरकारी रिपोर्ट की मानें तो नेपाल में 15 से 60 वर्ष के उम्र समूह का साक्षरता दर 95.54 प्रतिशत पहुंच चुका है।

नेपाल में वि.सं. 2067 तक घरधुरी सर्वेेक्षण तथ्यांक के अनुसार कुल निरक्षरों की संख्या 51 लाख 73 हजार नौ सय 79 था। लेकिन सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 तक देशभर में 15 से 60 वर्ष की उम्र तक के लोगों में 3 लाख लोग निरक्षर रह गए थे। लेकिन तब से लेकर अब तक निरक्षरों की संख्या में अवश्य ही कमी आयी होगी।

वहीं पूर्व प्राथमिक शिक्षा के दाखिला दर में नेपाल ने दो दशक में काफी वृद्धि किया है। वि.सं. 2057 में दाखिला दर 12 प्रतिशत थी जो वि.सं. 2074 में 86 प्रतिशत तक पहुंच गया। युनिसेफ ने इस बारे में कहा कि यह विश्व के लिए उदाहरण है। पिछले 12 वर्षों में प्रारंभिक बाल विकास केंद्रों की संख्या में 35 गुणा वृद्धि की गयी। जहां वि.सं. 2060 में बाल विकास केंद्रों की संख्या 38 था तो वहीं वि.सं. 2072 में यह संख्या बढ़कर 35991 हो गयी। जो यह दिखाती है नेपाल सरकार बच्चों की शिक्षा को लेकर कितना सजग है। 

लेकिन एक कटू सत्य यह भी है कि सरकारी आंकड़े और जमीनी स्तर में काफी अंतर होता है। देखा जाए तो केवल नाम लिखने भर से कोई भी व्यक्ति साक्षर नहीं हो सकता। इसके लिए जड़ से काम करने की आवश्यकता है। यदि जड़ एक बार मजबूत हो गया तो निरक्षरों की संख्या में अपने आप कमी होती चली जाएगी।

नेपाल सरकार ने आर्थिक वर्ष वि.सं. 2076-77 में शिक्षा क्षेत्र के लिए 1 अरब 63 अरब बजट निर्धारित किया है ताकि शिक्षा स्तर को और बेहतर किया जा सके। जबकि पिछले वित्त वर्ष में शिक्षा के लिए 1 अरब 34 अरब राशि निर्धारित की गयी थी।

साक्षरता का मतलब केवल पढ़ना- लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है। यह लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े के अनुसार दुनियाभर में चार अरब लोग साक्षर हैं और आज भी 1 अरब लोग पढ़-लिख नहीं सकते।

देश-दुनिया में गरीबी को मिटाना, बाल मृत्यु दर को कम करना, जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना, लैंगिक समानता को प्राप्त करना आदि को जड़ से उखाड़ना बहुत जरूरी है। ये क्षमता सिर्फ साक्षरता में है जो परिवार और देश की प्रतिष्ठा को बढ़ा सकता है। साक्षरता दिवस लगातार शिक्षा को प्राप्त करने की ओर लोगों को बढ़ावा देने के लिये और परिवार, समाज तथा देश के लिये अपनी जिम्मेदारी को समझने के मनाया जाता है।

साक्षरता को प्रभावशील और रोजमर्रा के जीवन में काम आने के लिए उसका रोजगारपरक होना जरूरी है। रोजगार के लिए साक्षरता के साथ कौशल का भी होना जरूरी है। रोजगार, करियर और आजीविका कमाने के लिए कौशल और अन्य योग्यता खासतौर पर तकनीकी एवं वोकेशनल स्किल्स की जरूरत है।

निरक्षता के बड़े पैमाने पर होने का कारण लोगों के बीच जागरूकता का न होना, गरीबी और शिक्षा का रोजगारपरक न होना है। साक्षरता बढ़ाने के लिए लोगों के बीच जागरूकता के अलावा उनको प्रोत्साहन देना होगा। गरीबी की समस्या के कारण देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी को परिवार के भरण-पोषण के लिए काम करना पड़ता है। हमारे यहां ज्यादातर स्कूलों का शेड्यूल सुबह में शुरू होता है और दिन के 3-4 बजे समाप्त हो जाता है। ऐसे में इन गरीब बच्चों के लिए शिक्षा हासिल करना मुमकिन नहीं होता है क्योंकि जो स्कूल का समय होता है, उस दौरान वह काम कर रहे होते हैं। उनकी समस्या को देखते हुए स्कूलों के शेड्यूल को लचीला बनाया जाना चाहिए ताकि वे पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी कर सकें।

शिक्षा का रोजगारपरक न होना भी निरक्षरता के बड़े कारणों में से एक है। हमारे यहां जितने शैक्षिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उनमें से बड़ी संख्या में कोर्स ऐसे हैं जिनको पढ़ने के बाद छात्रों के पास रोजगार का कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में इंजिनियरिंग प्राथमिक शिक्षा पूरी शिक्षा प्रणाली की नींव है और इसकी उपलब्धता स्थानीय स्तर पर होती है। इस वजह से बड़े अधिकारी या राजनेता प्रारम्भिक शिक्षा व्यवस्था की कमियों, जरूरतों से लगातार वाकिफ नहीं होते, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। अतः यह जरूरी है कि प्रारंभिक शिक्षा की निगरानी एवं जरूरतों के प्रति स्थानीय प्रतिनिधि अधिक सजगता रखें। चूंकि शहरों की अपेक्षा गांवों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की स्थिति बदतर है, इसलिए गांवों में बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने और बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने पर खास जोर देने की जरूरत है। मेडिकल के अलावा बाकी फील्ड्स खासतौर पर आर्ट्स ग्रैजुएट्स के लिए वोकेशनल स्किल में ट्रेनिंग का पर्याप्त बंदोबस्त होना चाहिए।

साक्षरता का आधार शिक्षा अर्जित करना होता है और शिक्षा का आधार ज्ञान। एक व्यक्ति बिना साक्षर हुए भी शिक्षित हो सकता है। साक्षरता एक मानव अधिकार है, सशक्तिकरण का मार्ग है और समाज तथा व्यक्ति के विकास का साधन है। लोकतंत्र की सुनिश्चितता के लिए साक्षरता आवश्यक है। साक्षरता का अर्थ है पढऩे-लिखने की योग्यता। साक्षरता आज की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। इसका सामाजिक एवं आर्थिक विकास से गहरा संबंध हैै। साक्षरता और स्वास्थ्य को जोडऩे वाली अनेक अत्यधिक महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। साक्षरता दक्षता और व्यवहार वे शक्तिशाली साधन हैं, जो स्वास्थ्य की बेहतर संभावनाएं निर्मित करने के लिए महिलाओं और पुरुषों में आवश्यक क्षमताओं तथा आत्मविश्वास को विकसित करती है। साक्षरता का अर्थ केवल पढऩे-लिखने और हिसाब-किताब करने की योग्यता प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि हमें नवसाक्षरों में नैतिक मूल्यों के प्रति आदरभाव रखने की भावना पैदा करना होगी।

इतना ही नहीं निरक्षर लोगों की कुल संख्या अब भी बहुत अधिक है और ज्ञानवान समाज के लक्ष्य की तरफ बढ़ता कोई भी देश अपनी इतनी विशाल आबादी को निरक्षर नहीं रहने दे सकता। साक्षरता ही वह प्रकाश-पुंज है, जो दुनिया के करोड़ों लोगों को अज्ञानता के अंधियारे से निकालकर उनके जीवन में ज्ञान का उजाला फैला सकता है। साक्षरता मानव की प्रगति और विकास का मूल मंत्र है। शिक्षा को अपनी प्राथमिकता सूची में पहले स्थान पर रखने से ही समाज, गांव, शहर, राज्य, देश वास्तविक रूप से सशक्त हो सकता है।
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